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कृषि मंत्री

भोपाल में किसान है परेशान, नहीं मिल रहे हैं प्याज और लहसुन के उचित दाम

भोपाल में किसान है परेशान, नहीं मिल रहे हैं प्याज और लहसुन के उचित दाम

वैसे तो मध्य प्रदेश की चर्चा आमतौर पर कृषि के क्षेत्र में कार्य करने हेतु होती रहती है। बार-बार न्यूज़ मीडिया के माध्यम से यह बताया जाता है कि मध्य प्रदेश की सरकार किसानों के हित के लिए कार्य कर रही है। किसान किस तरह से आत्मनिर्भर हो और किसान की आय में किस तरह से बढ़ोतरी हो, इसको लेकर लगातार मध्य प्रदेश सरकार काम करने की कोशिश कर रही है।

भोपाल के किसानों की फसल का अब क्या होगा ?

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में किसानों की हालत बहुत ही खराब हो चुकी है। किसानों को उनकी फसल का उचित रेट भी नहीं मिल पा रहा है, जिससे किसान काफी मायूस है। भोपाल के मंडियों में किसानों को उनके उगाई गई फसल लहसुन और
प्याज का उचित मूल्य भी प्राप्त नहीं हो रहा है, जिससे किसानों में काफी नाराजगी बनी हुई है। किसानों की तो यह स्थिति हो चुकी है कि फसल को बाजार तक लाने का किराया भी जुटा पाना मुश्किल हो गया है। इस बार मौसम ने भी किसानों के साथ शायद अन्याय कर दिया है, क्योंकि जहां देश के कई राज्यों में बारिश नहीं होने के कारण फसलों को भारी नुकसान झेलना पड़ा है, वहीं देश के अन्य राज्यों में अधिक बारिश होने के कारण सारे फसल पानी लग जाने के कारण बर्बाद हो चुके हैं। फसलों का इस तरह से बर्बाद हो जाना किसानों के लिए बहुत ही महंगा साबित हो रहा है। इस बार मौसम की बेरुखी के कारण ऐसे ही फसलों की उपज में कमी पाई गई है, वहीं दूसरी तरफ किसानों ने जो फसल उगाई थे उसका भी उचित मूल्य प्राप्त नहीं हो रहा है।


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कृषि मंत्री का अजीबोगरीब बयान

एक तरफ मध्य प्रदेश सरकार विश्व के बाजारों में अपने उत्पादन को प्रमोट करती हुई दिख रही है, तो दूसरी तरफ मध्य प्रदेश की राजधानी में ही किसानों का यह हाल है कि उनके द्वारा उपजाए गए फसलों का ही उचित मूल्य प्राप्त नहीं हो रहा है। ऐसी स्थिति में किसानों के साथ सरकार का रुख नरम होना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। समस्याओं का समाधान करने के बजाय मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री ने कुछ इस तरह का बयान दे दिया जिससे किसानों में भारी नाराजगी देखने को मिल रही है। मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री श्री कमल पटेल समस्याओं का निराकरण करने के बजाय है यह कहते हुए पाए गए कि किसानों को इस तरह की फसल नहीं उगाना चाहिए जिसका मंडियों में उचित मूल्य नहीं मिलता है। अब सवाल यह है कि क्या किसान सिर्फ उन्हीं फसलों की खेती करें जिसका मंडियों में उचित मूल्य मिलता हो?


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यह मामला तब सामने आया जब मध्य प्रदेश के एक किसान ने कृषि मंत्री श्री पटेल को फोन कर किसानों की हालत से अवगत कराया। बातचीत के दौरान कृषि मंत्री श्री पटेल ने यह कहा कि मैं किसानों को उनकी उपज का यानी लहसुन प्याज का उचित मूल्य कहां से दूं, कुछ दिन और रुक जाओ लहसुन के दाम 4 गुना अधिक हो जाएंगे। लेकिन किसानों का कहना है कि कुछ दिन बाद बाजार में नए फसल आ जाएंगे तो फिर लहसुन और प्याज का उचित मूल्य कहां से प्राप्त होगा। साथ में उन्होंने यह भी कहा कि मेरे पास कृषि विभाग है, मेरे अंदर लहसुन और प्याज का विभाग नहीं आता है। कृषि मंत्री का किसानों के प्रति इस तरह का विवादास्पद बयान देना बहुत ही आपत्तिजनक है। इस तरह के बयानों से किसानों को सिर्फ निराशा हाथ लगती है किसान मायूस हो जाते हैं और इसका असर आने वाले समय में व्यापक स्तर पर होने लगता है क्योंकि अगर किसान फसल ही नहीं उगाएंगे तो फिर क्या हालात होगी। ये भी पढ़ें : प्याज़ भंडारण को लेकर सरकार लाई सौगात, मिल रहा है 50 फीसदी अनुदान बात यहीं तक नहीं रुकती है। मंत्री जी ने किसानों को यह सलाह देते हुए कहा कि उन्हें मूंग की खेती करनी चाहिए। कई बार किसानों को उनकी फसल पर दोगुना तिन गुना अधिक रेट मिलता है। इसीलिए किसान को परेशान नहीं होना चाहिए। अगर किसान मूंग की खेती करते हैं तो उन्हें ज्यादा फायदा होगा। लेकिन किसानों का कहना है कि इससे पहले हमने सोयाबीन की खेती की थी उसका भी फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गया। किसी तरह का कोई सर्वे सरकार के द्वारा नहीं कराया गया, अगर हम मूंग (Mung bean) की फसल का उपज करते हैं तो इसकी गारंटी कौन लेगा कि आने वाले समय में इस फसल पर हमें अच्छा रेट मिल पाएगा।


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मूंग का मिल जाएगा अच्छा रेट?

अब यह समझने की भी जरूरत है कि फसलों को उगाने में किसान अपना सब कुछ लगा देते हैं और इन्हीं फसलों को बेचकर अपना उपार्जन करते हैं। फसलों का मौसम की बेरुखी के कारण बर्बाद हो जाना और उसके बाद इनकी समस्याओं को दरकिनार कर विवादास्पद बयान सरकार के मंत्रियों के द्वारा देना क्या किसानों के लिए हितकारी साबित होगा। जमीनी स्तर पर यह किस तरह से संभव हो पाएगा की किसान सिर्फ उन्हीं फसलों की खेती करें जिनका मार्केट वैल्यू यानी बाजार में अच्छे रेट मिल रहे हैं। क्योंकि फसल को उपजाने में मौसम का अहम योगदान होता है, यदि मौसम फसलों के अनुकूल होती है तो अच्छी उपज होती है इसके विपरीत अगर मौसम प्रतिकूल हो तो उपज पर गहरा असर पड़ता है और पैदावार अच्छी नहीं होती है। फसल वृद्धि का मौसम के साथ गहरा संबंध है। कुछ फसलों को अपना अंकुरण शुरू करने से लेकर और आगे विकास जारी रखने तक के लिए एक तापमान की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में यह सुनिश्चित करना कैसे संभव है कि मौसम के विपरीत जाकर सिर्फ मूंग की खेती करने से किसानों की समस्याओं का हल हो जाएगा। इस समय सरकार को किसानों की समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए उनकी समस्याओं पर विचार करते हुए उनके समस्याओं का निराकरण करना चाहिए और किस तरह से किसान बेहतर खेती कर पाए और उसके द्वारा उपजाए गए फसलों को उचित मूल्य बाजार और मंडियों में प्राप्त हो, इसके लिए सरकार को पहल करना चाहिए।


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साथ ही साथ सरकार को किसानों के फसल उगाने के लिए नए तकनीकों के साथ जोड़ने और प्रशिक्षण देना चाहिए, जिससे किसान आने वाले समय में अच्छा उपज करके अपनी फसल को बाजार और मंडियों में बेचकर उचित मूल्य को प्राप्त कर सके और कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की ओर बढ़ सके।
दुनिया को दिशा देने वाली हो भारतीय कृषि – तोमर कृषि मंत्री

दुनिया को दिशा देने वाली हो भारतीय कृषि – तोमर कृषि मंत्री

कृषि क्षेत्र में तकनीकों का उपयोग बढ़ाते हुए गांवों में ढांचागत विकास की दिशा में सरकार सतत संलग्नत है। सरकार खेती में रोजगार के अवसर बढाते हुए शिक्षत युवाओं को आकर्षित करना चाहती है ताकि युवाओं का ग्रामीण अंचल से पलायन रोका जा सके। खेती में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और पढ़े-लिखे युवा गांवों में ही रहकर कृषि की ओर आकर्षित होंगे। टेक्नालाजी व इंफ्रास्ट्रक्चर का लाभ किसानों को होगा, साथ ही कृषि के क्षेत्र को और सुधारने में कामयाबी मिलेगी। यह विचार कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Union Minister of State for Agriculture and Farmer Welfare Narendra Singh Tomar) ने बीते दिनों व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि “जब देश की आजादी के 100 वर्ष पूरे होंगे, यानी आजादी के अमृत काल तक भारतीय कृषि सारी दुनिया को दिशा देने वाली होनी चाहिए। अमृत काल में हिंदुस्तान की कृषि की विश्व प्रशंसा करे, लोग यहां ज्ञान लेने आएं, ऐसा हमारा गौरव हों, विश्व कल्याण की भूमिका निर्वहन करने में भारत समर्थ हो,” ।

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केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने यह बात भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर - ICAR) द्वारा आयोजित व्याख्यान श्रंखला की समापन कड़ी में कही। “प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से उद्बोधन में भी कृषि क्षेत्र को पुनः महत्व दिया है, जो इस क्षेत्र में तब्दीली लाने की उनकी मंशा प्रदर्शित करता है। पीएम ने आह्वान किया था कि किसानों की आय दोगुनी होनी चाहिए, कृषि में टेक्नालाजी का उपयोग व छोटे किसानों की ताकत बढ़नी चाहिए, हमारी खेती आत्मनिर्भर कृषि में तब्दील होनी चाहिए, पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर होना चाहिए, कृषि की योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता होनी चाहिए, अनुसंधान बढ़ना चाहिए, किसानों को महंगी फसलों की ओर जाना चाहिए, उत्पादन व उत्पादकता बढ़ने के साथ ही किसानों को उनकी उपज के वाजिब दाम मिलना चाहिए।

पीएम के इस आह्वान पर राज्य सरकारें, किसान भाई-बहन, वैज्ञानिक पूरी ताकत के साथ जुटे हैं और इसमें आईसीएआर (ICAR - Indian Council of Agricultural Research) की भी प्रमुख भूमिका हो रही है। पिछले दिनों में किसानों में एक अलग प्रकार की प्रतिस्पर्धा रही है कि आमदनी कैसे बढ़ाई जाएं, साथ ही पीएम श्री मोदी के आह्वान के बाद कार्पोरेट क्षेत्र को भी लगा कि कृषि में उनका योगदान बढ़ना चाहिए,” उन्होंने कहा। एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड योजना के दिशानिर्देशों का पूरा सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें श्री तोमर ने कहा कि “खाद्यान्न की अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ अन्य देशों को भी उपलब्ध करा रहे हैं। यह यात्रा और बढ़े, इसके लिए भारत सरकार प्रयत्नशील है। खेती व किसानों को आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ाना है। 

आईसीएआर व कृषि वैज्ञानिकों ने कृषि के विकास में बहुत अच्छा काम किया है। उनकी कोशिश रही है कि नए बीजों का आविष्कार करें, उन्हें खेतों तक पहुंचाएं, उत्पादकता बढ़े, नई तकनीक विकसित की जाएं और उन्हें किसानों तक पहुंचाया जाएं। जलवायु अनुकूल बीजों की किस्में, फोर्टिफाइड किस्में जारी करना इसमें शामिल हैं। सभी क्षेत्रों में वैज्ञानिकों ने कम समय में अच्छा काम किया, जिसका लाभ देश को मिल रहा है। आईसीएआर बहुत ही महत्वपूर्ण संस्थान हैं, जिसकी भुजाएं देशभर में फैली हुई हैं। कृषि की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संस्थान लगा हुआ है।


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किसानों की माली हालत सुधारना हमारे लिए महत्वपूर्ण है। इसके लिए 6,865 करोड़ रुपये के खर्च से दस हजार नए कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) बनाना शुरू किया गया है। इनमें से लगभग तीन हजार एफपीओ बन भी चुके हैं। इनके माध्यम से छोटे-छोटे किसान एकजुट होंगे, जिससे खेती का रकबा बढ़ेगा और वे मिलकर तकनीक का उपयोग कर सकेंगे, अच्छे बीज थोक में कम दाम पर खरीदकर इनका उपयोग कर सकेंगे, वे आधुनिक खेती की ओर अग्रसर होंगे, जिससे उनकी ताकत बढ़ेगी और छोटे किसान आत्मनिर्भर बन सकेंगे। 

श्री तोमर ने कहा कि कृषि क्षेत्र में निजी निवेश के लिए सरकार ने एक लाख करोड़ रुपये के इंफ्रास्ट्रक्चर फंड का प्रावधान किया है। साथ ही अन्य संबद्ध क्षेत्रों को मिलाकर डेढ़ लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का फंड तय किया गया है। एग्री इंफ्रा फंड (Agri Infra Fund) के अंतर्गत 14 हजार करोड़ रु. के प्रोजेक्ट आ चुके हैं, जिनमें से 10 हजार करोड़ रु. के स्वीकृत भी हो गए हैं। सिंचाई के साधनों में भी बढ़ोत्तरी हो रही है, जल सीमित है इसलिए सूक्ष्म सिंचाई पर फोकस है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का लाभ आम किसानों तक पहुंचाने के लिए सूक्ष्म सिंचाई कोष 5 हजार करोड़ रु. से बढ़ाकर 10 हजार करोड़ रु. किया गया है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि छोटे किसानों के लिए वरदान साबित हुई है। इस स्कीम में अभी तक लगभग साढ़े 11 करोड़ किसानों के बैंक खातों में 2 लाख करोड़ रु. से ज्यादा राशि जमा कराई जा चुकी हैं। 

Source : PIB (Press Information Bureau) Government of India आजादी का अमृत महोत्सव में केंद्रीय कृषि मंत्री के उद्बोधन के साथ संपन्न हुई आईसीएआर की 75 व्याख्यानों की श्रंखला का पूरा सरकारी दस्तावेज पढ़ने के लिए, यहां क्लिक करें प्रारंभ में आईसीएआर के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक ने स्वागत भाषण दिया। संचालन उप महानिदेशक डा. आर.सी. अग्रवाल ने किया।

किसानों को भरपूर डीएपी, यूरिया और एसएसपी खाद देने जा रही है ये सरकार

किसानों को भरपूर डीएपी, यूरिया और एसएसपी खाद देने जा रही है ये सरकार

जयपुर। खरीफ की फसल के सीजन में किसानों को भरपूर बीज एवं खाद देने की व्यवस्था की जा रही है। राजस्थान सरकार ने समस्त अधिकारियों को खाद व बीज की व्यवस्था दुरुस्त करने के निर्देश दिए हैं। 

एक समीक्षा बैठक में अधिकारियों को सख्त निर्देश देते हुए कृषि मंत्री लालचंद कटारिया ने कहा है कि किसानों को इन दोनों कृषि इनपुट की दिक्कत न हो। इसके लिए कृषि विभाग डीएपी, यूरिया और सिंगल सुपर फास्फेट (एसएसपी) फर्टिलाइजर का स्टॉक प्रचुर मात्रा में रखें। 

किसान भाई इस वर्ष खाद की चिंता न करें। आंकड़ो के अनुसार राजस्थान में 164.17 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल के लक्ष्य के विपरीत अब तक 66.05 लाख हेक्टेयर बुवाई हो चुकी है।

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उच्च क्वालिटी की पाइप लाइन बिछाने के निर्देश :

सरकार ने किसानों के खेतों में बिछाई जाने वाली पाइप लाइन की क्वालिटी उच्च रखने के निर्देश दिए हैं। माना जा रहा है कि पाइपलाइनों को जमीन के भीतर डालने की अपेक्षा जमीन के ऊपर बिछाने की व्यवस्था करनी चाहिए। 

जिससे किसानों को पाइपलाइन में लीकेज की जानकारी का सही व जल्दी पता चल सके। इसके अलावा खेतों में बनने वाले किसान फार्म पौंड स्कीम (Farm pond (Khet talai )) पर सुरक्षा की व्यावक व्यवस्था करने के लिए भी सख्ती से निर्देश दिए गए हैं।

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राज्य में 15 लाख बीज किट वितरित

- राजस्थान सरकार ने इस साल करीब 25 लाख किसानों को मुफ्त में बीज देने का लक्ष्य रखा है। जिसमें अब तक 15 लाख मिनिकिट्स वितरित किए जा चुके हैं। 

किसानों को बाजरा, मक्का, मूंग, उड़द व सोयाबीन के बीज दिए जा रहे हैं। इससे किसानों को काफी राहत मिलेगी।

जैविक खेती के लिए किसानों को दी जाएगी ट्रेनिंग

- राजस्थान सरकार अपने राज्य के किसानों को जैविक खेती के क्रियान्वयन के लिए ट्रेनिंग देने जा रही है। जैविक खेती के क्रियान्वयन और प्रचार-प्रसार में अधिक से अधिक प्रगतिशील एवं युवा किसानों को शामिल किया जा रहा है। 

ट्रेनिंग के दौरान किसानों को कृषि ज्ञान के साथ-साथ व्यवहारिक ज्ञान भी दिया जाएगा। ------- लोकेन्द्र नरवार

आजादी के अमृत महोत्सव में डबल हुई किसानों की आय, 75000 किसानों का ब्यौरा तैयार - केंद्र

आजादी के अमृत महोत्सव में डबल हुई किसानों की आय, 75000 किसानों का ब्यौरा तैयार - केंद्र

आजादी के अमृत महोत्सव में डबल हुई 75000 किसानों की आय का ब्यौरा तैयार - केंद्र

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने पिछले साल तय अपने निर्धारित लक्ष्य को पूरा किया है। परिषद ने पिछले साल आजादी के अमृत महोत्सव में किसानों की सफलता का दस्तावेजीकरण करने का टारगेट तय किया था। इस वर्ग में ऐसे कृषक मित्र शामिल हैं जिनकी आय दोगुनी हुई है या फिर इससे ज्यादा बढ़ी है। परिषद के अनुसार ऐसे 75 हजार किसानों से चर्चा कर उनकी सफलता का दस्तावेजीकरण कर किसानों का ब्यौरा जारी किया गया है। आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में आय बढ़ने वाले लाखों किसानों में से 75 हजार किसानों के संकलन का एक ई-प्रकाशन तैयार कर उसे जारी किया गया। [embed]https://youtu.be/zEkVlSwkq1g[/embed]

भाकृअनुप ने अपना 94वां स्थापना दिवस और पुरस्कार समारोह – 2022 का किया आयोजन

प्रेस रिलीज़ :

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 94वें स्थापना दिवस पर कृषि मंत्री की अध्यक्षता में समारोह, पुरस्कार दिए

केंद्रीय मंत्री तोमर ने किया विमोचन

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने समारोह में कहा कि, देश में कृषि क्षेत्र एवं कृषक मित्रों का तेजी से विकास हो रहा है। केंद्र एवं राज्य सरकारों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), भारत के कृषि विज्ञान केंद्रों के समन्वित प्रयास के साथ ही जागरूक किसान भाईयों के सहयोग से किसान की आय में वृद्धि हुई है। परिषद ने 'डबलिंग फार्मर्स इनकम' पर राज्य आधारित संक्षिप्त प्रकाशन भी तैयार किया है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने विमोचन अवसर पर ई-बुक को जारी किया।

पुरस्कार से नवाजा

कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के 94वें स्थापना दिवस पर मंत्री तोमर ने उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए वैज्ञानिकों व किसानों को पुरस्कृत भी किया। पूसा परिसर, दिल्ली में आयोजित समारोह में तोमर ने कहा कि, आज का दिन ऐतिहासिक है, क्योंकि आईसीएआर ने पिछले साल, आजादी के अमृत महोत्सव में ऐसे 75 हजार किसानों से चर्चा कर उनकी सफलता का दस्तावेजीकरण करने का लक्ष्य निर्धारित किया था, जिनकी आय दोगुनी या इससे ज्यादा दर से बढ़ी है। उन्होंने कहा कि सफल किसानों का यह संकलन भारत के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा। केंद्रीय मंत्री तोमर ने आईसीएआर के समारोह में अन्य प्रकाशनों का भी विमोचन किया। उन्होंने आईसीएआर के स्थापना दिवस को संकल्प दिवस के रूप में मनाने की बात इस दौरान कही।

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कृषि क्षेत्र में निर्मित किए जा रहे रोजगार अवसर

कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि, कृषि प्रधान भारत देश में निरंतर कार्य की जरूरत है। इस क्षेत्र में आने वाली सामाजिक, भौगोलिक, पर्यावरणीय चुनौतियों के नित समाधान की जरूरत भी इस दौरान बताई। उन्होंने पारंपरिक खेती को बढ़ावा देने के मामले में तकनीक के समन्वित इस्तेमाल का जिक्र अपने संबोधन में किया। उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री की कोशिश है कि गांव और गरीब-किसानों के जीवन में बदलाव आए। मंत्री तोमर ने ग्रामीण क्षेत्र में एग्री इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित कर, कृषि का मुनाफा बढ़ाने के लिए किए जा रहे केंद्र सरकार के कार्यों पर इस दौरान प्रकाश डाला।

एग्री इंफ्रास्ट्रक्चर से की जा रही फंडिंग

केंद्रीय मंत्री ने बताया कि नव रोजगार सृजन के लिए हितग्राही योजनाएं लागू कर उचित फंडिंग की जा रही है। ग्रामीण नागरिकों को रोजगार से जोड़ा जा रहा है। खास तौर पर कृषि में रोजगार के ज्यादा अवसर निर्मित करने का सरकार का लक्ष्य है।

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जलवायु परिवर्तन चिंतनीय

केंद्रीय कृषि मंत्री ने आईसीएआर की स्थापना के 93 साल पूर्ण होने के साथ ही वर्ष 1929 में इसकी स्थापना से लेकर वर्तमान तक संस्थान द्वारा जारी की गईं लगभग 5,800 बीज-किस्मों पर गर्व जाहिर किया। वहीं इनमें से वर्ष 2014 से अभी तक 8 सालों में जारी की गईं लगभग दो हजार किस्मों को उन्होंने अति महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया। उन्होंने जलवायु परिवर्तन की स्थिति को चिंतनीय कारक बताकर कृषि वैज्ञानिकों, साथियों से इसके सुधार की दिशा में रोडमैप बनाकर आगे बढ़ने का आह्वान किया।

नई शिक्षा नीति का उदय -

मंत्री तोमर ने प्रधानमंत्री की विजन आधारित नई शिक्षा नीति का उदय होने की बात कही। उन्होंने स्कूली शिक्षा में कृषि पाठ्यक्रम के समावेश में कृषि शिक्षा संस्थान द्वारा प्रदान किए जा रहे सहयोग पर प्रसन्नता व्यक्त की। मंत्री तोमर ने दलहन, तिलहन, कपास उत्पादन में प्रगति के लिए आईसीएआर (ICAR) और केवीके ( कृषि विज्ञान केंद्र (KVK)) को अपने प्रयास बढ़ाने प्रेरित किया। समारोह के पूर्व देश के विभिन्न हिस्सों के किसानों से कृषि मंत्री ने ऑनलाइन तरीके से विचार साझा किए। हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात के किसानों से हुई चर्चा में सरकारी योजनाओं, संस्थागत सहयोग से किसानों की आय में किस तरह वृद्धि हुई इस बात की जानकारी मिली।
PMFBY: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसान संग बीमा कंपनियों का हुआ कितना भला?

PMFBY: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसान संग बीमा कंपनियों का हुआ कितना भला?

कृषि मंत्री तोमर ने सदन में दी जानकारी : बीमा दावे पर 1.19 करोड़ का भुगतान किया

बीमा कंपनियों को 40 हजार करोड़ की कमाईः मीडिया रिपोर्ट्स

खेती को मुनाफे का धंधा बनाने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारें विभन्न प्रोत्साहन योजनाएं संचालित कर रही हैं। कृषि फसल को प्राकृतिक आपदा या अन्य किसी वजह से हुए नुकसान आदि के कारण, किसान को हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए फसल बीमा योजना भी, इन्हीं कृषि प्रोत्साहन योजनाओं में से एक योजना है।

पीएमएफबीवाई (PMFBY)

केंद्रीय स्तर पर संचालित, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana – PMFBY) से भी देश के किसानों के आर्थिक नुकसान की भरपाई का प्रबंध करने केंद्र सरकार ने सुविधा प्रदान की है। इस योजना को लागू करने का उद्देश्य किसानों को फायदा पहुंचाना है, हालांकि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीते पांच सालों के दौरान कंपनियों से ज्यादा भला कृषि बीमा करने वाली कंपनियों का हुआ है। इन मीडिया रिपोर्ट्स को कृषि मंत्री द्वारा प्रस्तुत जानकारी के बाद बल मिला है। न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार, वर्ष 2016-17 से 2021-22 के कालखंड में, कृषि बीमा करने वाली विभिन्न इंश्योरेंस कंपनियों को 40,000 करोड़ रुपए की कमाई हुई है।


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इतनी कंपनियां करती हैं बीमा

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई/PMFBY) के अंतर्गत बीमा सुविधा प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार ने 18 बीमा कंपनियों को काम सौंपा है। इन कंपनियों का काम किसानों को प्राकृतिक आपदा से होने वाले फसल के नुकसान के लिए बीमा राशि के रूप में नियमानुसार जरूरी वित्तीय मदद प्रदान करना है।

केंद्रीय मंत्री ने दी जानकारी

भारत सरकार में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कृषि बीमा के बारे में ब्यौरा प्रस्तुत किया है। केंद्रीय मंत्री के मुताबिक बीमा कंपनियों के पास प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई/PMFBY) के अंतर्गत डेढ़ लाख करोड़ (कुल 159,132) रुपए से अधिक की प्रीमियम राशि जमा की गई थी। उन्होंने बताया कि, किसानों द्वारा प्रस्तुत बीमा संबंधी दावे के लिए 119,314 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान किया गया। आपको बता दें कि, इस योजना से जुड़े किसानों को मामूली प्रीमियम जमा करना पड़ता है।

4190 रुपए प्रति हेक्टेयर

एक समाचार माध्यम ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा राज्यसभा में दिए गए लिखित जवाब पर न्यूज रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई/PMFBY) के अंतर्गत खरीफ 2021-22 सीजन तक किसानों द्वारा प्रस्तुत बीमा के दावों के भुगतान के रुप में 4190 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से बीमा राशि का भुगतान किया गया।

साल 2020 में बदले नियम

बीते 6 साल पहले शुरू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई/PMFBY) में वर्ष 2020 में बदलाव किया गया था। इस बदलाव के तहत अब किसान अपनी स्वैच्छिक भागीदारी से भी योजना में जुड़ सकते हैं।


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72 घंटे का समय

योजना के पात्र किसान को फसल के नुकसान की सूचना संबंधित पात्र केंद्र अथवा अधिकारी तक पहुंचाने के लिए समय निर्धारित किया गया है। नुकसान प्रभावित किसान को इस योजना के तहत फसल बीमा ऐप, सीएससी केंद्र या निकटतम कृषि अधिकारी के माध्यम से नुकसान के 72 घंटों के अंदर फसल नुकसान की सूचना प्रस्तुत करना अनिवार्य है। इस प्रक्रिया से किसानों को हुए नुकसान के बारे में फसल बीमा का दावा करने में आसानी हुई है। योजना की खास बात यह भी है कि इसमें दावा राशि का भुगतान सीधे किसानों के खाते में किया जाता है।

इतना प्रीमियम भुगतान

  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई/PMFBY) में फसल बीमा कराने के इच्छुक किसान को खरीफ फसल की बीमा राशि का दो प्रतिशत अदा करना होता है।
  • रबी फसल के लिए यह राशि और कम है। रबी की फसल के लिए किसान को 1.5 फीसदी बीमा राशि का भुगतान करना होगा।
  • बागवानी एवं वाणिज्यिक फसलों के बीमा के लिए किसान को प्रीमियम बतौर 5 प्रतिशत राशि का भुगतान करना होगा।
पीएमएफबीवाई के राष्ट्रीय फसल बीमा पोर्टल (एनसीआईपी) से कृषि बीमा कार्य को और आसान बनाने की कोशिश सरकार ने की है। फसल बीमा मोबाइल ऐप नामांकन प्रक्रिया को आसान बनाता है। एनसीआईपी इसके अलावा प्रीमियम प्रेषण, भूमि रिकॉर्ड के एकीकरण आदि में भी किसान के लिए मददगार है।
'मोती की खेती' ने बदल दी किताब बेचने वाले नरेन्द्र गरवा की जिंदगी, अब कमा रहे हैं सालाना पांच लाख रुपए

'मोती की खेती' ने बदल दी किताब बेचने वाले नरेन्द्र गरवा की जिंदगी, अब कमा रहे हैं सालाना पांच लाख रुपए

जयपुर (राजस्थान), लोकेन्द्र नरवार

आज हम आपको बता रहे हैं मेहनत और लगन की एक और कहानी। राजस्थान के रेनवाल के रहने वाले नरेन्द्र गरवा जो कभी किताबें बेचकर अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे, 

आज खेती से सालाना पांच लाख रुपए से ज्यादा कमा रहे हैं। जी हां, नरेन्द्र गरवा ने किताब बेचना छोड़ मोती की खेती (Pearl Farming) शुरू कर दी। और आज 'मोती की खेती' ने नरेन्द्र गरवा की जिंदगी बदल दी है। 

जो लोग कहते हैं कि खेती-किसानी में कुछ नहीं रखा है। नरेन्द्र गरवा उन लोगों के लिए एक मिशाल हैं। उन्हें नरेन्द्र की मेहनत और लगन से सीखना चाहिए।

राजस्थान में किशनगढ़ रेनवाल के रहने वाले नरेन्द्र गरवा

गूगल से ढूंढा था 'मोती की खेती' का प्लान

- राजस्थान में किशनगढ़ रेनवाल के रहने वाले नरेन्द्र गरवा जब किताब बेचते थे, तो मेहनत करने के बाद भी उन्हें काफी कुछ मुसीबतों का सामना करना पड़ता था। 

एक दिन नरेन्द्र ने गूगल पर नए काम की तलाश की। गूगल से ही उन्हें 'मोती की खेती' का पूरा प्लान मिला और निकल पड़े मोती की खेती करने।

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शुरुआत में पागल समझते थे लोग

- नरेन्द्र गरवा ने सबसे पहले अपने घर की छत पर मोती की बागवानी शुरू की थी। तब लोग नरेन्द्र को पागल समझते थे। बाहर वालों के साथ साथ घर के लोग भी कहते थे कि इसका दिमाग खराब हो गया है। 

परिवार के लोगों ने भी पागल कहना शुरू कर दिया था। लेकिन नरेन्द्र के जज्बे, मेहनत और लगन ने सबको परास्त कर दिया। आज वही लोग नरेन्द्र की तारीफों के पुल बांधते देखे जा सकते हैं।

30-35 हजार में शुरू किया था काम, आज 300 गज के प्लाट में लगा है कारोबार

- तकरीबन चार साल पहले नरेन्द्र गरवा ने सीप (Oyster) की खेती की शुरुआत की थी। हालांकि शुरुआत में उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं थी। 

सबसे पहले नरेन्द्र उडीसा में सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वाटर एक्वाकल्चर (Central Institute of Freshwater Aquaculture) के मुख्यालय गए और यहां से लौटने के बाद महज 30-35 हजार रुपए की छोटी सी रकम लगाकर सीप से मोती बनाने की एक बहुत छोटी सी इकाई शुरू की। वर्तमान में नरेन्द्र 300 गज के प्लाट में लाखों रुपए का काम कर रहे हैं।

मुम्बई, गुजरात और केरल से खरीदते हैं सीप

- अपने प्लाट में ही नरेन्द्र ने छोटे-छोटे तालाब बना रखे हैं। इन तालाबों के अंदर वो मुम्बई, गुजरात और केरल के मछुआरों से सीप (बीज) खरीदकर लाते हैं। 

वह अच्छी खेती के किये हमेशा 1000 सीप एक साथ रखते हैं, जिससे साल अथवा डेढ़ साल के अंदर डिजाइनर व गोल मोती मिल ही जाते हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री वशुधंरा व पूर्व कृषि मंत्री सैनी कर चुके हैं तारीफ

Vasundhara Raje Scindia 

- अपनी मेहनत और लगन से 'मोती की खेती' में नरेन्द्र गरवा ने महारत हांसिल की है। राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वशुधंरा राजे सिंधिया और कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी ने नरेन्द्र के प्रयास और सफलता की तारीफ की थी। आज भी नरेन्द्र उन दिनों को अपनी जिंदगी के सबसे यादगार पल मानते हैं।

पराली मैनेजमेंट के लिए केंद्र सरकार ने उठाये आवश्यक कदम, तीन राज्यों को दिए 600 करोड़ रूपये

पराली मैनेजमेंट के लिए केंद्र सरकार ने उठाये आवश्यक कदम, तीन राज्यों को दिए 600 करोड़ रूपये

खरीफ का सीजन चरम पर है, देश के ज्यादातर हिस्सों में खरीफ की फसल तैयार हो चुकी है। कुछ हिस्सों में खरीफ की कटाई भी शुरू हो चुकी है, जो जल्द ही समाप्त हो जाएगी और किसान अपनी फसल घर ले जा पाएंगे। 

लेकिन इसके साथ ही एक बड़ी समस्या किसान अपने खेत में ही छोड़कर चले जाते हैं, जो आगे जाकर दूसरों का सिरदर्द बनती है, वो है पराली (यानी फसल अवशेष or Crop residue)। पराली एक ऐसा अवशेष है जो ज्यादातर धान की फसल के बाद निर्मित होता है। 

चूंकि किसानों को इस पराली की कोई ख़ास जरुरत नहीं होती, इसलिए किसान इस पराली को व्यर्थ समझकर खेत में ही छोड़ देते हैं। कुछ दिनों तक सूखने के बाद इसमें आग लगा देते हैं ताकि अगली फसल के लिए खेत को फिर से तैयार कर सकें। 

पराली में आग लगाने से किसानों की समस्या का समाधान तो हो जाता है, लेकिन अन्य लोगों को इससे दूसरे प्रकार की समस्याएं होती हैं, जिसके कारण लोग पराली जलाने (stubble burning) के ऊपर प्रतिबन्ध लगाने की मांग लम्बे समय से कर रहे हैं। 

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विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर भारत में ख़ास तौर पर पंजाब और हरियाणा में जो भी पराली जलाई जाती है, उसका धुआं कुछ दिनों बाद दिल्ली तक आ जाता है, जिसके कारण दिल्ली में वायु प्रदुषण के स्तर में तेजी से बढ़ोत्तरी होती है। 

इससे लोगों का सांस लेना दूभर हो जाता है, इसको देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से पराली के प्रबंधन को लेकर ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। 

पराली की वजह से लोगों को लगातार हो रही समस्याओं को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों ने अलग-अलग स्तर कई प्रयास किये हैं, जिनमें पराली का उचित प्रबंधन करने की भरपूर कोशिश की गई है ताकि किसान पराली जलाना बंद कर दें। 

इस साल भी खरीफ का सीजन आते ही केंद्र सरकार ने पराली के मैनेजमेंट (फसल अवशेष प्रबन्धन) को लेकर कमर कस ली है, जिसके लिए अब सरकार एक्टिव मोड में काम कर रही है। 

अभी तक सरकार दिल्ली के आस पास तीन राज्यों के लिए पराली प्रबंधन के मद्देनजर 600 करोड़ रुपये का फंड आवंटित कर चुकी है। यह फंड हरियाणा, पंजाब तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पराली मैनेजमेंट के लिए जारी किया गया है।

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ने पराली मैनेजमेंट के लिए राज्यों की तैयारियों की समीक्षा के लिए बुलाई गई उच्चस्तरीय बैठक में बताया कि, पिछले 4 सालों में केंद्र सरकार ने पराली से छुटकारा पाने के लिए किसानों को 2.07 लाख मशीनों का वितरण किया है। 

जो पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों को वितरित की गईं हैं। बैठक में तोमर ने कहा कि केंद्र सरकार किसानों के द्वारा पराली जलाने को लेकर बेहद चिंतित है। 

पराली मैनेजमेंट के मामले में राज्यों की सफलता तभी मानी जाएगी जब हर राज्य में पराली जलाने के मामले शून्य हो जाएं, यह एक आदर्श स्थिति होगी। 

इस लक्ष्य को पाने के लिए राज्य सरकारों को कड़ी मेहनत करनी होगी और अपने यहां के किसानों को पराली मैनेजमेंट के प्रति जागरूक करना होगा, ताकि किसान पराली जलाने के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं को गंभीरता से समझ पाएं।

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बैठक में कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि पराली जलाने के बेहद नकारात्मक परिणाम हमारे पर्यावरण के ऊपर भी होते हैं। ये परिणाम अंततः लोगों के ऊपर भारी पड़ते हैं। 

ऐसे में राज्यों के जिलाधिकारियों को उच्चस्तरीय कार्ययोजना बनाने की जरुरत है, ताकि एक निश्चित अवधि में ही इस समस्या को देश से ख़त्म किया जा सके। 

मंत्री ने कहा कि राज्यों को और उनके अधिकारियों को गंभीरता से इस समस्या के बारे में सोचना चाहिए कि इसका समस्या का त्वरित समाधान कैसे किया जा सकता है।

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कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि हमें वेस्ट को वेल्थ में बदलने की जरुरत है, यदि किसानों को यह समझ में आ जाएगा कि पराली के माध्यम से कुछ रुपये भी कमाए जा सकते हैं, तो किसान जल्द ही पराली जलाना छोड़ देंगे। 

इसलिए कृषि अधिकारियों को चाहिए कि पूसा संस्थान द्वारा तैयार बायो-डीकंपोजर के बारे में किसानों को बताएं। जहां भी पूसा संस्थान द्वारा तैयार बायो-डीकंपोजर लगा हुआ है वहां किसानों को ले जाकर उसका अवलोकन करवाना चाहिए, 

साथ ही इसके अधिक से अधिक उपयोग करने पर जोर दें, जिससे किसानों को यह पता चल सके कि पराली के द्वारा उन्हें किस प्रकार से लाभ हो सकता है।

फसल खराब होने पर किसानों को मिली क्षतिपूर्ति, सरकार ने जारी की 3 हजार 500 करोड़ की मुआवजा राशि

फसल खराब होने पर किसानों को मिली क्षतिपूर्ति, सरकार ने जारी की 3 हजार 500 करोड़ की मुआवजा राशि

इस साल भारी बरसात के कारण महाराष्ट्र की फसलों को कई प्रकार का नुकसान हुआ है, जिससे किसानों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया है, क्योंकि बरसात के साथ-साथ कीटों के भीषण प्रकोप से किसानों की फसलें पूरी तरह से चौपट हो गईं हैं। इसको देखते हुए पिछले कई दिनों से राज्य के किसान, सरकार से फसलों को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति की मांग कर रहे थे। अंततः किसानों की यह मांग सरकार तक पहुंच गई है। राज्य के कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार ने कहा है कि मुश्किल की इस घड़ी में सरकार किसानों के साथ खड़ी है। किसानों की परेशानियों को देखते हुए सरकार ने मुआवजा के तौर पर 3 हजार 500 करोड़ रुपये की राशि जारी की है, जो प्रभावी किसानों के बैंक खाते में भेजी जाएगी। उन्होंने यह भी बताया कि इस राशि का वितरण 15 सितम्बर से प्रारम्भ हो चुका है। उन्होंने कहा कि पिछली सरकार में इस प्रकार की मुआवजा राशि के वितरण में काफी धांधली हुई थी। लेकिन इस बार राज्य की शिंदे सरकार किसानों के प्रति संवेदनशील है, इसलिए किसानों को हुई क्षति की भरपाई की जा रही है। राज्य सरकार किसानों के लिए मुआवजा राशि जारी करने में पूरी तरह से सक्षम है। इस बीच कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार ने कहा कि भीषण बरसात और कीटों के प्रकोप से राज्य में लगभग 27 लाख किसान प्रभावित हुए हैं। राज्य के मराठवाड़ा क्षेत्र में कीटों के हमले से फसलों को भारी नुकसान हुआ है। इस दौरान सबसे ज्यादा नुकसान झेलने वाली फसल सोयाबीन रही, जिसे कीट खाकर चट कर गए। ऐसे किसान जिनकी फसलों को कीटों ने नुकसान पहुंचाया है, उनके लिए सरकार ने 97 करोड़ रूपये की राशि जारी की है। ये भी पढ़े: किसानों में मचा हड़कंप, केवड़ा रोग के प्रकोप से सोयाबीन की फसल चौपट इस राशि को सहायता राशि के तौर पर किसानों के बीच वितरित किया जाएगा। उन्होंने आगे कहा, सभी जिला अधिकारियों ने किसानों का पैसा उनके बैंक खातों में ऑनलाइन माध्यम से ट्रांसफर करना शुरू कर दिया है, जो जल्द ही किसानों को मिल जाएगा। उनकी सरकार किसानों के खातिर केंद्र सरकार से ऑनलाइन ई-पीक निरीक्षण में बदलाव करने की मांग भी करेगी। सत्तार ने एकनाथ शिंदे सरकार को किसानों का हितैषी बताया, साथ ही कहा कि एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस किसानों की सभी प्रकार की समस्याएं सुलझाने में सक्षम हैं। इस बार की खरीफ फसल के दौरान हुई बरसात ने किसानों की फसलों में भारी नुकसान पहुंचाया है, रही सही कसर घोंघों ने पूरी कर दी है। घोंघों ने भी फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया है, जिसके कारण राज्य में फसलें चौपट हो गईं हैं। अगर हम हम फसलों के नुकसान का जिलेवार आंकलन करें तो सबसे ज्यादा नुकसान लातूर, उस्मानाबाद और बीड जिलों में उगाई गई फसलों को हुआ है। इन जिलों में फसलों के ऊपर दोहरी मार पड़ी है। एक तो पहले ज्यादा बरसात की वजह से यहां की फसलें चौपट हो गईं हैं, बाकी रही सही कसर घोंघों ने पूरी कर दी है। इन जिलों में किसानों की स्थित को देखते हुए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इन 3 जिलों के लिए 98 करोड़ 58 लाख रुपये की मुआवजा राशि जारी की है, जिसे यहां के प्रभावित किसानों के बीच वितरित किया जा रहा है ताकि नुकसान की थोड़ी बहुत भरपाई की जा सके। इसके साथ ही कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार ने कहा कि एकनाथ शिंदे सरकार राज्य में प्रगति लाने के लिए आधुनिक कृषि पर ध्यान केंद्रित कर रही है, ताकि राज्य के किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों के साथ-साथ आधुनिक कृषि यंत्रों से अवगत करवाया जा सके। इससे फायदा यह होगा कि किसान कम समय में, कम लागत के साथ ज्यादा से ज्यादा उत्पादन कर पाएंगे, जिससे किसानों की आमदनी में भी वृद्धि होगी। ये भी पढ़े: खेती-किसानी के हर क्षेत्र में कृषि उपकरण उपलब्ध करा रही परफुरा टेक्नोलॉजीज (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड मुख्यमंत्री का प्रयास है कि जो भी किसान आधुनिक कृषि को अपनाएं वो अन्य किसानों को भी आधुनिक खेती के महत्व को समझाएं, ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान इस प्रकार खेती करके लाभान्वित हो सकें। उन्होंने कहा, सरकार इस बात का पूरा प्रयास कर रही है कि आधुनिक कृषि यंत्रों की जानकारी गांव के अंतिम किसान तक पहुंचे, ताकि हर किसान इस तरह के कृषि यंत्रों और तकनीक से लाभान्वित हो सके, जिससे किसानों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी के साथ ही उनकी आय में भी वृद्धि हो और राज्य का किसान खुश रहे।
पंजाब सरकार पराली जलाने से रोकने को ले कर सख्त, कृषि विभाग के कर्मचारियों की छुट्टी रद्द..

पंजाब सरकार पराली जलाने से रोकने को ले कर सख्त, कृषि विभाग के कर्मचारियों की छुट्टी रद्द..

पंजाब के कृषि मंत्री ने पराली जलाने (stubble burning) पर प्रतिबंध को जमीनी स्तर पर लागू करने के लिए पिछले दिनों अधिकारियों के साथ बैठक की। बैठक के दौरान, उन्होंने अधिकारियों को जमीनी स्तर पर किसानों के साथ मिलकर काम करने की सलाह दी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रतिबंध का ठीक से पालन हो। खेती का सीजन जोरों पर है। आने वाले दिनों में धान की फसल कटाई के लिए तैयार हो जाएगी। बहुत जगह फसल तैयार भी हो चुकी हैं और कटाई शुरू हो चुकी है। इसी कड़ी में पंजाब सरकार ने बहुत ही सक्रिय भूमिका निभाई है। पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए इस बार पंजाब सरकार जमीनी स्तर पर सक्रिय भूमिका निभा रही है और इसको ध्यान मे रखते हुए पंजाब सरकार ने एक उल्लेखनीय निर्णय लिया है जिसमे कृषि विभाग सहित सभी कर्मचारियों की छुट्टी रद्द कर दी है। कृषि मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल (Kuldeep Singh Dhaliwal ने इस बारे में जानकारी साझा की है। ये भी पढ़े: पराली जलाने पर रोक की तैयारी

इस तारीख तक छुट्टी रद्द

पंजाब सरकार ने पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए राज्य के कृषि विभाग के कर्मचारियों की 7 नवंबर तक की छुट्टी रद्द करने का फैसला किया है। दरअसल पंजाब के कृषि मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने बीते रोज पराली जलाने को रोकने के लिए अधिकारियों के साथ बैठक की और जिला स्तर पर क्रियान्वयन करने के लिए इसके रोडमैप पर चर्चा की। मंत्री महोदय ने कहा कि राज्य में पराली जलाने की प्रथा को रोकने के लिए विभिन्न कदम उठाए जा रहे हैं। इन कदमों में शिक्षा और प्रवर्तन भी शामिल हैं। मंत्री ने कृषि विभाग के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को जमीनी स्तर पर ध्यान केंद्रित कर काम करने के लिए कहा। उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे 7 नवंबर तक विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को छुट्टी न दें। कृषि मंत्री ने पराली जलाने को रोकने के लिए जागरूकता अभियान चलाने और सभी गतिविधियों की निगरानी के लिए एक राज्य स्तरीय समिति का गठन किया है। सख्त निर्देश देते हुए मंत्री महोदय ने सेंट्रल कंट्रोल रूम बनाने के भी आदेश दिए हैं। ये भी पढ़े: पराली प्रदूषण से लड़ने के लिए पंजाब और दिल्ली की राज्य सरकार एकजुट हुई दिल्ली-एनसीआर में हर साल सर्दी के मौसम में गंभीर वायु प्रदूषण होता है। प्रदूषण की शुरुआत अक्टूबर महीने से हो जाती है। यह वही समय है जब पंजाब और हरियाणा में किसानों द्वारा पराली जलाया जाता है जो की एक गंभीर समस्या का रूप ले लेता है। हाल के वर्षों में पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए तरह-तरह के प्रयास किए जा रहे हैं जिसमे किसानों को जागरूक भी किया जा रहा हैं। इसी समय दिल्ली एनसीआर में पराली के धुएं से होने वाले प्रदूषण का अनुपात 40% से अधिक दर्ज किया है। खुले में पराली को जलाने से वातावरण में बड़ी मात्रा में हानिकारक प्रदूषक निकलते हैं, जिनमें गैसें भी शामिल हैं जो पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं। ये प्रदूषक को वातावरण में फैलने से रोकना चाहिए क्योंकि ये भौतिक और रासायनिक परिवर्तनों से गुजरते हैं और अंततः धुंध की मोटी चादर बना देते हैं। इससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये भी पढ़े: पंजाब सरकार बनाएगी पराली से खाद—गैस पराली जलाने से बचने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार राष्ट्रीय पराली नीति बनाई है। राज्यों को इसका सख्ती से पालन करने का दिशा निर्देश भी दिया गया है। आज तक, खेतों में पराली को नष्ट करने के लिए कोई प्रभावी और उपयुक्त तरीके और मिशनरी सामने नहीं आए हैं। हैपीसीडर व एसएमएस सिस्टम से प्रणाली भूसे को खेत में मिलाया जा सकता है, लेकिन यह पूरी तरह से ठोस प्रणाली नहीं है जिससे खेत अगली फसल के लिए पूरी तरह से तैयार हो सके। पराली जलाने की समस्या के समाधान के लिए पिछले चार साल में केंद्र सरकार ने पंजाब पर करोड़ों रुपये खर्च किए हैं, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है। खेतों में अभी भी बड़ी संख्या में पराली जलाई जा रही है।
महाराष्ट्र राज्य के कृषि मंत्री ने बारिश से तबाह हुई फसलों का मुआयना करने के बाद किसानों की सहायता करने का आश्वासन दिया।

महाराष्ट्र राज्य के कृषि मंत्री ने बारिश से तबाह हुई फसलों का मुआयना करने के बाद किसानों की सहायता करने का आश्वासन दिया।

बारिश की मार से परेशान किसानों को दिया महाराष्ट्र के कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार ने अतिशीघ्र मुआवजा देने का आश्वासन, साथ ही मुआवजा देने के लिए अधिकारियों को जल्दी सर्वे करने का आदेश दिया गया। महाराष्ट्र में बारिश के कारण हजारों एकड़ फसल बर्बाद हो चुकी है, साथ ही प्राकृतिक आपदा के चलते सैकड़ों किसान आत्महत्या कर चुके हैं। प्रदेश की इतनी गंभीर स्थिति को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार जल्द से जल्द किसानों को राहत राशि प्रदान करने की कोशिश कर रही है, जिससे किसान हताश होकर आत्महत्या जैसे कदम न उठा पाएं। हालाँकि किसानों को किसी भी आर्थिक सहायता की कोई उम्मीद नहीं दिखाई दे रही थी। लेकिन अब स्वयं महाराष्ट्र के कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार द्वारा फसल अतिवृष्टि का दौरा करने के एवं आर्थिक सहायता का आश्वासन देने के बाद किसानों के अंदर ढांढ़स बंधी है।


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कृषि मंत्री द्वारा क्या क्या निर्देश दिए गए ?

कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार द्वारा अतिशीघ्र फसल के नुकसान का सर्वे करने का निर्देश देते हुए कहा गया कि, कोई भी किसान जिसकी फसल प्राकृतिक आपदा के चलते नष्ट हो चुकी है, वह सर्वे या किसी भी लापहरवाही के चलते आर्थिक सहायता के लाभ से छूटना नहीं चाहिए। कृषि मंत्री सत्तार ने जिले के नंदुरधोक, वैजापुर तालुका, रंजन गॉव एवं कापू वडगांव गए और वहां जाकर किसानों को सांत्वना दी एवं उनकी भरपूर मदद करने का वादा किया।

कब तक होगा अतिवृष्टि फसलों का सर्वे, आखिर कब मिलेगा मुआवजा ?

महाराष्ट्र में अक्टूबर की शुरुआत में भीषण जलधारा के चलते किसानों को बेहद नुकसान हुआ है। इसी सन्दर्भ में महाराष्ट्र के कृषि मंत्री ने जल्द से जल्द सही व सटीक, बर्बाद फसलों का पूर्णतया सर्वे करने के उपरांत, तुरंत किसानों को मुआवजा देने के निर्देश दिए हैं। किसानों को भी कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार ने बोला है कि चिंता करने की कोई बात नहीं, सरकार किसानों की मुश्किल घड़ी में हमेशा साथ खड़ी है।

महाराष्ट्र के कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार के दौरे के समय कौन कौन लोग उपस्थित रहे ?

महाराष्ट्र राज्य के कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार द्वारा फसल अतिवृष्टि के दौरे के समय वैजापुर तालुका के कृषि अधिकारी अशोक अधव, गंगापुर समूह विकास अधिकारी विजय परदेशी, वैजापुर तालुका के विधायक रमेश बोरवने, गंगापुर के तहसीलदार सतीश सोनी, गंगापुर तालुका के कृषि अधिकारी ज्ञानेश्वर तरगे, वैजापुर समूह विकास अधिकारी हरकल सहित किसान, कृषि सहायक एवं बोर्ड अधिकारी भी रहे।
केंद्रीय कृषि मंत्री ने NMNF पोर्टल का किया शुभारंभ

केंद्रीय कृषि मंत्री ने NMNF पोर्टल का किया शुभारंभ

केंद्रीय कृषि मंत्री ने एनएमएनएफ (NMNF) नामक पोर्टल का शुभारंभ कल दिल्ली के कृषि भवन में राष्ट्रीय प्राकृतिक कृषि मिशन की संचालन समिति की बैठक में की। 

नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग नामक पोर्टल का शुभारंभ करने का मुख्य उद्देश प्राकृतिक खेती को आगे बढ़ाने का है, जिसे पारंपरिक खेती के रूप में भी जाना जाता है। यह एक रासायनिक मुक्त कृषि पद्धति है। 

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कल नई दिल्ली के कृषि भवन में राष्ट्रीय प्राकृतिक कृषि मिशन की संचालन समिति की पहली बैठक की अध्यक्षता की। तोमर ने बैठक के दौरान एनएमएनएफ पोर्टल का शुभारंभ किया। 

उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए कहा की प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की आज के इस दौर में सबसे ज्यादा जरूरत है। यह खेती ऑन-फार्म बायोमास रीसाइक्लिंग पर आधारित है, जिसमें बायोमास मल्चिंग पर विशेष जोर दिया जाता है। खेत में गाय के गोबर-मूत्र आदि का प्रयोग करके खेती की जाती है एवं सभी सिंथेटिक रासायनिक आदानों से बचाया जाता है।

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उन्होंने कहा कि देश के प्राकृतिक खेती के मिशन को सबके सहयोग से अंजाम दिया जाएगा। इस संबंध में, उन्होंने अधिकारियों को राज्य सरकारों और केंद्रीय विभागों के साथ मिलकर काम करने का निर्देश दिया ताकि किसानों से जुड़ाव को सुगम बनाया जा सके, जिससे किसान अपने उत्पादों को अधिक आसानी से बेच सकें। 

बैठक में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह, जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही, केंद्रीय कृषि सचिव मनोज आहूजा और विभिन्न मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। 

केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के द्वारा लॉन्च किया गया यह पोर्टल का लिंक है (http://naturalfarming.dac.gov.in/) जिसमे इस मिशन की सभी जानकारी, संसाधन, कार्यान्वयन प्रगति, किसान पंजीकरण, ब्लॉग और किसानों के लिए अन्य उपयोगी जानकारी शामिल है। यह वेबसाइट देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने में भी मदद करेगी।

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केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बैठक के दौरान कहा कि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए अच्छी पहल की गई है। बैठक के दौरान उन्होंने इस संबंध में सुझाव भी दिए। जल शक्ति मंत्री शेखावत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देखरेख में प्राकृतिक खेती के लिए गंगा के किनारे काम किया जा रहा है। 

पहले चरण में, जल शक्ति मंत्रालय ने सहकार भारती के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करके 75 सहकार गंगा गांवों की पहचान की है और किसानों को प्रशिक्षण भी प्राप्त कराया जा रहा है। 

यूपी के कृषि मंत्री शाही के मुताबिक, राज्य में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए नमामि गंगे परियोजना शुरू हो गई है, प्रत्येक ब्लॉक में काम करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है और मास्टर प्रशिक्षण हुआ है। 

अब तक 7.33 लाख किसानों ने प्राकृतिक खेती की शुरुआत की है। किसान स्वच्छता और प्रशिक्षण के लिए लगभग 23 हजार कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं। चार राज्यों में गंगा के किनारे 1.48 लाख हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती की जा रही है। उम्मीद है की आनेवाले समय में किसानों के लिए यह मिशन रामबाण साबित होगा।

यह सरकार कर रही भूरा तना मधुआ कीटों से प्रभावित फसल की सुरक्षा के लिए आवश्यक प्रयास

यह सरकार कर रही भूरा तना मधुआ कीटों से प्रभावित फसल की सुरक्षा के लिए आवश्यक प्रयास

बिहार के कृषि मंत्री सर्वजीत कुमार द्वारा बताया गया है कि कृषि विभाग द्वारा भूरा तना मधुआ नामक कीट के प्रकोप से किसानों की धान की तैयार फसल की बर्बादी का आकलन हो रहा है। आकलन उपरांत विभाग के माध्यम से जरुरी कार्रवाई होगी। बिहार के अधिकतर किसान आज भी प्रकृति पर निर्भर हैं। उत्तरी बिहार में जहां बाढ़ के चलते फसलें बर्बाद हो जाती हैं, तो वहीं दूसरी तरफ मगध क्षेत्र में समय पर बरसात न होने पर किसानों को सुखाड़ का सामना करना पड़ता है। बिहार सरकार के माध्यम से इन प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए विभिन्न योजनाएं भी चलाई जा रही हैं। साथ ही, मुआवजा के रूप में धनराशि भी किसानों को दी जा रही है। लेकिन इन प्राकृतिक आपदाओं के अलावा भूरा तना मधुआ कीट भी किसानों के लिए सिर दर्द बन गया है, क्योंकि यह एकत्रित होकर थोड़े समय में ही फसल को बुरी तरह प्रभावित कर देते हैं। फिलहाल बिहार के किसानों को चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं है, कृषि मंत्रालय द्वारा स्वयं इसके नियंत्रण के लिए प्रयास किया गया है।

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धान की खड़ी फसलों में न करें दवा का छिड़काव, ऊपरी पत्तियां पीली हो तो करें जिंक सल्फेट का स्प्रे कृषि मंत्री सर्वजीत कुमार ने गुरुवार को प्रेस वार्ता के दौरान पटना में कहा कि भूरा तना मधुआ कीट (बीपीएच - ब्राउन प्लांट हॉपर; brown plant hopper; या कत्थई फुदका ) धान की फसल के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदेह साबित हो रहा है। खास कर इसके आक्रमण का प्रकोप गया, भोजपुर, बक्सर, नालंदा, लखीसराय एवं औरंगाबाद सहित प्रदेश के विभिन्न जनपदों में देखा जा रहा है। उन्होंने बताया कि कृषि विभाग द्वारा इससे किसानों को छुटकारा दिलाने के लिए आवश्यक कदम उठाया गया है। पंचायत स्तर से लेकर जिला स्तर तक पदाधिकारियों की देखरेख में एक विशेष अभियान चलाया जा रहा है।

फसल संरक्षण के लिए पूर्ण रूप से प्रयास हो रहा है

कृषि मंत्री ने बताया है कि पौधा संरक्षण संभाग के माध्यम से भूरा तना मधुआ कीट के नियंत्रण हेतु निर्धारित कीटनाशी का इस्तेमाल कर किसानों द्वारा कटाई के लिये तैयार धान की फसल को हानि से बचाने के प्रयास किये जा रहे हैं। निर्धारित कीटनाशी प्रति एकड़ 225-250 लीटर पानी में मिला कर, छिड़काव तने की ओर करें व प्रभावित क्षेत्र से 10 फीट की दूरी तक चारों ओर छिड़काव करें। ध्यान रखें की छिड़काव के वक्त खेत में अत्यधिक जल-जमाव न हो। उन्होंने कहा है कि इन कीटों द्वारा धान के तनों से रस को चूसने के कारण फसल को भारी क्षति पहुंचती है। इन हल्के-भूरे रंग के कीटों का जीवन चक्र 20-25 दिनों तक का होता है। बड़े और छोटे दोनों प्रकार के कीट पौधों के तने के मुख्य हिस्से पर रहकर रस चूसते हैं। ज्यादा रस निकलने के कारण धान के पौधों में पीलापन आ जाता है, साथ ही जगह-जगह पर चटाईनुमा आकार सा हो जाता है, जिसे ‘हॉपर बर्न’ (hopper burn) नाम से जाना जाता है।